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तुम्हारा ग़म इस क़दर पिया है कि स्याहि बन , उतर आया

तुम्हारा ग़म इस क़दर पिया है कि
स्याहि बन , उतर आया है कलम में

 पन्न्ने जला रहा है 
लफ़्ज़ों मे आग भर के। Musings - 14/6/18
तुम्हारा ग़म इस क़दर पिया है कि
स्याहि बन , उतर आया है कलम में

 पन्न्ने जला रहा है 
लफ़्ज़ों मे आग भर के। Musings - 14/6/18

Musings - 14/6/18