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जब दुख से विचलित हृदय तंत्र हो, विचलित मन कुम्हला

जब दुख से विचलित हृदय तंत्र हो, 
विचलित मन कुम्हलाना हो। 
जैसे तरु हरा  भरा अब, 
पतझड़ में मुरझाना हो। 
मिले बहुत से अपने भी, 
सांत्वना से सावन लाने को। 
उड़े परिंदो की भाँति ही, 
नव्  तरु में, घर बनाना हो। 
जब दुख से......................... 
फिर क्यों ना कोई, मरहम बनता, 
ना कोई सहभागी हो। 
सांत्वना की मरीचिका से, 
अप्रशन्न हृदय का कोना हो। 
जब दुख से..........................  सांत्वना
जब दुख से विचलित हृदय तंत्र हो, 
विचलित मन कुम्हलाना हो। 
जैसे तरु हरा  भरा अब, 
पतझड़ में मुरझाना हो। 
मिले बहुत से अपने भी, 
सांत्वना से सावन लाने को। 
उड़े परिंदो की भाँति ही, 
नव्  तरु में, घर बनाना हो। 
जब दुख से......................... 
फिर क्यों ना कोई, मरहम बनता, 
ना कोई सहभागी हो। 
सांत्वना की मरीचिका से, 
अप्रशन्न हृदय का कोना हो। 
जब दुख से..........................  सांत्वना

सांत्वना