मन-चाही मन्नतें पाने के बाद भी मन कयूं कुछ और चाहने लगता है! क्यूं , आखिर क्यूं ?!? भटकता है ये मन !?! .. .. क्यूं भटकता है ये मन? क्या मन को पता नहीं उसे क्या चाहिए! जिस दिन मन को समझ आ गई उसे क्या चाहिए उसी दिन सारी भाग-दौड़, राग-द्वेष, बहकना-भटकना, जीवन-मरण खत्म मन को जगजीत नहीं बस "एक" सच्चा मनमीत चाहिए।