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पढने की चाह वो नादान थी कमाने को आस भी बुलंद थी भ

पढने की चाह वो
नादान थी
कमाने को आस भी
बुलंद थी

भरोसा न था आप पर
तर्क मेरा गुरुर
न साधना न संयम
पागलपन से मजबूर

अहसास परम तत्त्व का
गहरा होता गया
जैसे ध्यान में मैं
मग्न होता गया

मंजिल में घुल जाना
रास्तों पर सहम
खुद में गुरु हो जाना
लुप्त हुआ वहम आप सभी को पहली पातशाही श्री गुरुनानक देव जी के 551वें प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ। 
#गुरुनानकजयंती  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
पढने की चाह वो
नादान थी
कमाने को आस भी
बुलंद थी

भरोसा न था आप पर
तर्क मेरा गुरुर
न साधना न संयम
पागलपन से मजबूर

अहसास परम तत्त्व का
गहरा होता गया
जैसे ध्यान में मैं
मग्न होता गया

मंजिल में घुल जाना
रास्तों पर सहम
खुद में गुरु हो जाना
लुप्त हुआ वहम आप सभी को पहली पातशाही श्री गुरुनानक देव जी के 551वें प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ। 
#गुरुनानकजयंती  #YourQuoteAndMine
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