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धीर वीर ............ हौसले जो हों बुलंद, हर मुश्क

धीर वीर
............

हौसले जो हों बुलंद, हर मुश्किल हल कर सकते हैं।
दुनिया क्या रोके उसे? जो लिखी भाग्य मोड़ सकते हैं।
मुसीबतों की तू बात न कर, यह तो है आनी जानी।
मझधार फंसी कश्ती को भी, साहिल पर धर सकते है।
लक्ष्मण रेखा के दास यूं ही, बहाने गढ़ते रहते हैं।
सागर में पतवार लिए बस, मतवाले जा सकते हैं।

पुरवईया की उमस में, तन तार-तार हो जाता है।
विचलित नहीं होता वह मन, जो पर्वत से टकराता है।
सूरज की तपिस क्या? सागर शुन्य कर सकती है।
पर्वत की ऊँचाई क्या? गगन शीश चुम सकती है।
मन में ठान लिए जो नर, वह सब हासिल कर सकते हैं।
सागर में पतवार लिए बस, मतवाले जा सकते हैं।

विहग उड़ते उन्मुक्त गगन में, पर उनकी भी सीमा होती।
अर्णब होत है गहरा पर, उसकी भी परिसीमा होती।
बुझदिल साहिल के भोगी, बस बैठे ही रह जाते हैं।
सागर की गर्त से धीर वीर, मोती चुन ले आते हैं।
जुनून की बुनियाद पर, हर बाजी जीत सकते हैं।
सागर में पतवार लिए बस, मतवाले जा सकते हैं।

©Tarakeshwar Dubey धीर वीर

#gaon
धीर वीर
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हौसले जो हों बुलंद, हर मुश्किल हल कर सकते हैं।
दुनिया क्या रोके उसे? जो लिखी भाग्य मोड़ सकते हैं।
मुसीबतों की तू बात न कर, यह तो है आनी जानी।
मझधार फंसी कश्ती को भी, साहिल पर धर सकते है।
लक्ष्मण रेखा के दास यूं ही, बहाने गढ़ते रहते हैं।
सागर में पतवार लिए बस, मतवाले जा सकते हैं।

पुरवईया की उमस में, तन तार-तार हो जाता है।
विचलित नहीं होता वह मन, जो पर्वत से टकराता है।
सूरज की तपिस क्या? सागर शुन्य कर सकती है।
पर्वत की ऊँचाई क्या? गगन शीश चुम सकती है।
मन में ठान लिए जो नर, वह सब हासिल कर सकते हैं।
सागर में पतवार लिए बस, मतवाले जा सकते हैं।

विहग उड़ते उन्मुक्त गगन में, पर उनकी भी सीमा होती।
अर्णब होत है गहरा पर, उसकी भी परिसीमा होती।
बुझदिल साहिल के भोगी, बस बैठे ही रह जाते हैं।
सागर की गर्त से धीर वीर, मोती चुन ले आते हैं।
जुनून की बुनियाद पर, हर बाजी जीत सकते हैं।
सागर में पतवार लिए बस, मतवाले जा सकते हैं।

©Tarakeshwar Dubey धीर वीर

#gaon

धीर वीर #gaon #कविता