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कहां उमर थी उसकी , घर चलाने की। किसे खबर थी उसकी,

कहां उमर थी उसकी , घर चलाने  की।
किसे खबर थी उसकी, फिर बसाने की।
बच्चा है  पर  सयानों की तरह निरन्तर।
लगा हुआ है फिर से , बस  कमाने  की।

कहां किसे है कहना , सब  जताने की।
बिका हुआ है सच भी,कुछ फसाने की।
सुना दिया है  बुत को, सब जमाने की।
मरा ज़मीर है फितरत, मुख छुपाने की।

के एल महोबिया

©K L MAHOBIA
  #वक्त_और_जिन्दगी - के एल महोबिया
klmahobia1677

K L MAHOBIA

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#वक्त_और_जिन्दगी - के एल महोबिया #ज़िन्दगी

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