मैं शब्दों पर विचार थोड़ा कम करने लगा हूँ, वो क्या है न! मैं कारोबार करने लगा हूँ| अब कविताएँ मुझसे पिरोयी नहीं जाती, कल्पनाओं में थोड़ा कम अब मैं रहने लगा हूँ| ख़्वाहिशें अब भी बहुत हैं और उनमें तुम ही हो, हक़ीक़त को मगर अब मैं समझने लगा हूँ| बड़ा आडम्बर रचते हैं इश्क़ में यहाँ सब, फ़ितरत लोगों की अब मैं पढ़ने लगा हूँ| लफ़्ज़ों में बयां मैं अब करूँ भी तो क्या, नज़रों तक को लहज़े में अब मैं रखने लगा हूँ| #करनेलगाहूँ #hindipoetry #विचार #yqdidi #februarydiary #vineetvicky #encoreekkhwab