बीती विभावरी जाग री अंबर पनघट में डूबो रही तारा घट उषा नागरी अंधरों में राग अमंद पिए अलकों में मलयज बंद किए तू अब तक सोई है आली आंखों में भरे विहाग री... -वेद प्रकाश ©VED PRAKASH 73 #शिलालेख