ईश्वर की संरचना में सर्वाधिक श्रेष्ठ स्थिति मनुष्य की है मानव शरीर पाने के लिए देवता भी तरसते हैं देखा जाए तो सबसे उच्च पायदान पर माना है जानवर से नीचे है लेकिन जो जितनी ऊंचाई पर रहता है वह जब गिरता है तो किसी नियम स्तर पर गिरकर कहा नहीं जा सकता सबसे ऊंचा शिखर पर बैठना मनुष्य कभी-कभी जानवर से भी नीचे चला जाता है किसी मनुष्य पर रोज उतारने के लिए जानवरों से तुलना कर दी जाती है लेकिन जानवर भी अपनी पेट पालने के लिए हमेशा एक ही काम करते हैं जंगल का राजा शेर होता है लेकिन उससे कभी अपना सिद्धांत है एक तो मैं अपने आहार के लिए शिकार खुद करता है और झूठे वासी मांस का भक्षण नहीं करता इसके अलावा जब का पेट भर जाता है तो बचा हुआ इससे को बांधकर संग्रह नहीं करता उसे छोड़कर चल देता है जब बच्चे हुए हिस्से का भी क्षण में दूसरे ऐसा है जानवर करते हैं इस कारण पर्यावरण वादी शेर को जंगल का रक्षक बताते हैं गांव से लेकर महानगरों तक धोखाधड़ी तिगड़म नारी अस्मिता शरीर नंद जैसी घटनाएं स्थित तक हो रही है वह जानवरों से नीचे स्तर का है बड़े धनिष्ठा से देखने वाले दोस्त ही नहीं खुद घर के खूनी ही रिश्ते से बांधे लोग क्या-क्या नहीं कर रहे सक्षम होते ही माता-पिता को वृद्धाश्रम का रास्ता दिखाना क्या यह अच्छा संस्कार है सार्वजनिक जीवन में आदर्श सत्य संस्कार धर्म का प्रचलन देने वालों तक का ही करनी आई दिनों लोगों के सामान है यही कारण सब करते हैं कि राजा सिद्धार्थ को मानव जीवन की नफरत हो गई है गोस्वामी तुलसीदास की आत्मा ने उन्हें जो कर दिया है उनके जीवन यही सीख मिलती है कि घटिया स्तर की सोच जब मनुष्य छोड़ देगा उसी समय उसका के रूप में जन्म सार्थक होगा यदि ऐसा नहीं करता तो उसका अलग जन्म क्या होगा वह तो फिलहाल स्पष्ट नहीं है लेकिन को संस्कार उसके परिवार में घुस गए हो तो उसकी अगली पीढ़ी गलत स्तर पर प्रेस चली जाएगी क्योंकि घर के बच्चे बड़ों की नकल करते हैं ©Ek villain # जन्म की सार्थकता #safar