टूटे हुए सपने मुझे इज़्तिराब कर रहे हैं उड़ने को पंख मेरे फ़िर से बेताब कर रहे हैं आसमाँ ही है ठिकाना मेरा, मैं परिंदा हूँ अरमान मेरे फ़िर से मुझे उस्तुवार कर रहे हैं दुनिया ज़ालिम है नहीं समझती दर्द मेरा बहते ये अश्क़ तेरे मुझे ना-तवाँ कर रहे हैं कश्ती लब-ए-साहिल पर पहुँच ही जाती वो तूफान-ए-ज़िन्दगी को पार कर रहे हैं हसरत मेरी मुझे ही मुक़म्मल करनी है यहाँ थम जाए 'सफ़र' मेरा वो इंतज़ार कर रहे हैं इज़्तिराब- बेचैन उस्तुवार- strong ना-तवाँ- कमज़ोर ♥️ Challenge-585 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :)