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जां को आफ़ात ना आफ़ात को जां छोड़ती है! मुझको अब

जां को आफ़ात ना आफ़ात को जां छोड़ती है! 
मुझको अब भी तेरी उम्मीद कहाँ छोड़ती है! 

मैं तुझे छोड़ के आया हूँ उसी होंसले से,, 
वो कि जिस होंसले से जिस्म को जां छोड़ती है! 
आओ देखो मेरे चेहरे के खद ओ खाल को अब, 
मान जाओगे मुहब्बत भी निशां छोड़ती है! 

# syed ali qaim naqvi#

©Azeem Khan #syed ali qaim naqvi poetry# shanaya Siddiqui A Dr Ashish Vats कवि राहुल पाल
जां को आफ़ात ना आफ़ात को जां छोड़ती है! 
मुझको अब भी तेरी उम्मीद कहाँ छोड़ती है! 

मैं तुझे छोड़ के आया हूँ उसी होंसले से,, 
वो कि जिस होंसले से जिस्म को जां छोड़ती है! 
आओ देखो मेरे चेहरे के खद ओ खाल को अब, 
मान जाओगे मुहब्बत भी निशां छोड़ती है! 

# syed ali qaim naqvi#

©Azeem Khan #syed ali qaim naqvi poetry# shanaya Siddiqui A Dr Ashish Vats कवि राहुल पाल
azeemkhan5403

Azeem Khan

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