जां को आफ़ात ना आफ़ात को जां छोड़ती है! मुझको अब भी तेरी उम्मीद कहाँ छोड़ती है! मैं तुझे छोड़ के आया हूँ उसी होंसले से,, वो कि जिस होंसले से जिस्म को जां छोड़ती है! आओ देखो मेरे चेहरे के खद ओ खाल को अब, मान जाओगे मुहब्बत भी निशां छोड़ती है! # syed ali qaim naqvi# ©zeem Khan #syed ali qaim naqvi poetry# A कवि राहुल पाल