घट से उद्वेलित मनोभावों को प्रेषित हो जाने दो, न करो अवरुद्ध मार्ग मृदुल वाणी कह जाने दो, सार शाश्वत तो ब्रह्याण्ड का भी कदापि नही है, मनीषा को भी आज सत्यमेव जयते हो जाने दो, बहुब्रीहि मेधा का उचित,नेक कर्म में व्यस्त करो, सौरभ सु भान इस तन को वात्सल्य हो जाने दो, अंतरंग अनुयायी अभिलाषा चेतना जागृत कर, बहे सलिल विनम्र भाव का ऐसा अमृत हो जाने दो, मस्तिष्क की प्रबलता से टूटे हुए स्वप्न साकार होते, बाह्य जगत टिप्पणी त्याग अंतः मलिन हो जाने दो, ♥️ Challenge-585 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।