दिल की खिड़की से बाहर देखो कभी। बारिश की बूंँदों सा एहसास मेरा। घनी जुल्फ़ों की गिरह खोलो ना कभी। बहती हवा सा एहसास मेरा।। खोल दो गिरह दिल की तुम। गाँठ मन में कोई डालो ना तुम। हमसे मिल कर खुल कर कह दो तुम। अपनी हर एहसास जता दो तुम।। ना रखो कोई गिला शिकवा। ना मन में रहे कोई मलाल। आओ खुल कर जी ले जरा। क्या पता कल कोई खुशियाँ ना हों।। मन में मत रखिए कोई बात। करते रहिए आपस में जिरह। अक्सर उसी से खुल जाती। आपस के दिलों की गिरह।। लाख छुपाओ विरह दिल की तुम। परत–दर–परत खुलती गिरह दिल की। आपस में गिरह को खोलते रहिए। ना आने दीजिए कभी गिरह रिश्तों की।। ♥️ Challenge-702 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।