अपना आशियाना बसाने को न जाने इंसान ने कितनों का आशियाना मिटा दिया। कभी घूमा करते थे खुले जंगलों में स्वछन्द से सभी उनको सीमित कर दिया। दिन पर दिन काटते ही जा रहे हैं जंगलों को पशु-पक्षियों को बेघर कर दिया। वजूद खत्म हो गया ना जाने कितनी ही अद्भुत प्रजाति के पशु-पक्षी, पेड़ों का। बदलते वक्त के साथ इंसान और इंसान का रहन-सहन भी बदलता जा रहा है। बनता जा रहा हर इंसान स्वार्थी अपने स्वार्थ में इंसानियत को भूलता जा रहा है। 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏 💫Collab with रचना का सार..📖 🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों को रचना का सार..📖 के प्रतियोगिता:-125 में स्वागत करता है..🙏🙏 *आप सभी 6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।