लिपट जाओ खुद की भाषा से, कहीं यह केवल दिवस बनकर ही न रह जाए। पाश्चात्य की दौड़ में कहीं, हिंदी इतिहास बनकर न रह जाए। हो गया ऐसा तो भूल जाना, कि बच्चा संस्कारवान बन जाए। फिर तो रहना तैयार, कहीं भारत में, वृद्धा आश्रम दस गुने न बढ़ जाए। निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।। अंग्रेज़ी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन पै निज भाषाज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।। ©Deepak Bisht #हिंदी ए हम