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ना मेरी ख्वाहिश में मशहूर हो जाऊं, ना चाह मेरी हर

ना मेरी ख्वाहिश में मशहूर हो जाऊं,
ना चाह मेरी हर दिल  मैं छा जाऊं,
चाह नहीं मेरी में किसी की भावना खंडित करूं,
चाह मेरी बस मैं,सत्य की राह अपनाऊं ।

 चाह मेरी नहीं बनूं मैं किसी का अनुगामी,
चाह मेरी मैं जहां में खुद की पहचान मैं पाऊं,
मैं नहीं बहुज्ञाता, मैं तो बस एक तुच्छ मानव,
जितनी हुई यहां अनुभूति,वहीं मैं लिख पाऊं।

वर्ष  तेंतालिस आज पूरे हुए जो जीवन के,
देखें ना जाने कितने मंजर इस जीवन के,
धूप में छांव,छांव में धूप का एहसास मिला,
कोई जीवन में खास तो कोई दूर मिला,
अपनों में गैर , गैरों में अपनों का दीदार मिला,
कहीं असली तो कहीं बस दिखावें का प्यार मिला।
,,दीप, मेरी डायरी,५
,जीवन के तैतालीस वर्ष,
,१० सितम्बर,
#reading
ना मेरी ख्वाहिश में मशहूर हो जाऊं,
ना चाह मेरी हर दिल  मैं छा जाऊं,
चाह नहीं मेरी में किसी की भावना खंडित करूं,
चाह मेरी बस मैं,सत्य की राह अपनाऊं ।

 चाह मेरी नहीं बनूं मैं किसी का अनुगामी,
चाह मेरी मैं जहां में खुद की पहचान मैं पाऊं,
मैं नहीं बहुज्ञाता, मैं तो बस एक तुच्छ मानव,
जितनी हुई यहां अनुभूति,वहीं मैं लिख पाऊं।

वर्ष  तेंतालिस आज पूरे हुए जो जीवन के,
देखें ना जाने कितने मंजर इस जीवन के,
धूप में छांव,छांव में धूप का एहसास मिला,
कोई जीवन में खास तो कोई दूर मिला,
अपनों में गैर , गैरों में अपनों का दीदार मिला,
कहीं असली तो कहीं बस दिखावें का प्यार मिला।
,,दीप, मेरी डायरी,५
,जीवन के तैतालीस वर्ष,
,१० सितम्बर,
#reading

मेरी डायरी,५ ,जीवन के तैतालीस वर्ष, ,१० सितम्बर, #reading