कोयल मीठी - सी कुहू करती आई चीर के रात्रि के अंधेरे को मन में मीठी - सी उमंग संग लाई प्रात: वंदन करती हुई गीत गाती चली आई। आशा की किरण जगाने चली आई राग - विहाग की तान उठाकर देह को प्रकाशमान करके वर्ण - भेद का फ़र्क़ मिटाने चली आई। सुरीली आवाज़ से लय बनाने चली आई गीत गा - गाकर मन लुभाने भोर को सकारात्मकता से गुंजाएमान करने चली आई। दूसरों के सुरों से होड़ लगाती हुई इठहलाने और इतराने चली आई। ©@happiness #selfwritten #selfcontent #loves #lovebirds