सजाए मौत के दर पर खड़ी मैं, खुद की हाज़री दर्ज करा रही हु, उन गलतियों की सज़ा माँग रही हु, जो मैंने कभी की ही नहीं। किसी ने खूब ही कहा है, की सच्चे दिल से मांगों तो खुद भी माफ़ कर देता हैं, लेकिन यहाँ तो इसी सच्चे दिल की दुहाई देते देते आज मैं खुद खुदा के दरबार मे पेशी लगाने आयी हु, उन गलतियों की सज़ा मांग रही हु, जो कभी मैने की ही नहीं। उनके तर्ज़ पे फ़र्ज़ की तबाही उमड़ पड़ी, और उस भोझ के तले मैं ही उस आँधी के हिस्सा बन गयी। और कभी डरने वाली उन आँधियों से आज खुद आँधियों के साथ हो ली बेबाक थी जो कभी बेबस सी रही गयी और उन गलतियों की सज़ा मांग रही है जो कभी उसने की ही नहीँ। किसी ने सही कहा है, सच्चे दिलवालो को खुदा जल्दी बुला लेता है, शायद इसी इंतेज़ार में, खुद खुदा मेरा इंतेज़ार कर रहा था। उस शख्सियत क जिसका नाम 'सच्चाई' था।। सजाए मौत के दर पर खड़ी मैं, खुद की हाज़री दर्ज करा रही हु, उन गलतियों की सज़ा माँग रही हु, जो मैंने कभी की ही नहीं। किसी ने खूब ही कहा है, की सच्चे दिल से मांगों तो खुद भी माफ़ कर देता हैं, लेकिन यहाँ तो इसी सच्चे दिल की दुहाई देते देते आज मैं खुद खुदा के दरबार मे पेशी लगाने आयी हु,