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रोने की तुमको मनाही है, लेकिन घर से दूर जब गए होगे

रोने की तुमको मनाही है, लेकिन घर से दूर जब गए होगे तो,किसी पर्दे के पीछे  तुम भी रोए होगे। किसी के कहने से यह आंसू थोड़े ही थमते है।
माना कि तुम आस्तिक नहीं, लेकिन किसी रोज़ इबादत में तुम भी खोए होगे।
पहली बार जब अपने से दूर हुए होगे, अकेले के डर से तुम भी थोड़े तो सहमे ही होगे। लेकिन तुमने  अंशु नहीं बहाए होगे।
आखिर रोने की तुमको मनाही जो हैं।
बढ़ती उम्र के साथ तुम सभ्य होते जा रहे हो, लेकिन कभी तो तुम अल्हड़पन में जिए होगे।उस अल्हड़पन को अपने अंदर एक उम्र तक बाकी भी रहने दो ।
माना कि अब बारिश भी तुम्हे चुभने लगी होगी ,लेकिन बारिश में कभी न कभी तुम भी भीगे होगे। उस लिहाज़ से कभी वही वक्त दोहरा भी लिया करो।
सुर्ख उम्र में तुम मुस्कराना भूल रहे हो, लेकिन कभी तो तुम  बेबात भी हंसते होगे। अब भी जिंदादिली का वहीं हुनर संभाले रखो। ख़ुद से इश्क की उम्र में, खुदको फना। ये कैसे अंदाज में तुम जी रहे हो?

©Ruksar Bano
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Ruksar Bano

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