कहते हैं हर कोई,, तू है पापा की परछाई शाम सवेरे उठ कर जो तुम लेती थी अंगड़ाई हम सब से बिना मतलब की करती थी लड़ाई पूछते हैं घर के हर कोने कहां गई ओ नटखट बलाई जो करती थी सबकी भलाई पूछते हैं घर के हर पौधे कहां चली गई हमारी खून की सिंचाई सब कहते हैं ना रहा कोई अधिकार ना आने की कोई आस बस एक ही एहसास तू जब भी आएगी बस जाने की बात की जाएगी पूछते गांव के हर गलियांरे खेत और खलियान कहां गई हो छोटी सी मुस्कान जो भर देती थी हम सब में जान रूठ गई ओ नदिया जो बहती कल कल की तराई पूछ रहे हैं घर के भगवन ,, ओ बाती कहां हैं जो हर दिन ,,शाम सवेरे उठ करती थी दीपक और घंटी के संग पूरे घर की घुमाई पूछते हैं दुकान पर आने वाले हर एक भगवान वह दिख नहीं रही कहीं है गई है क्या कब आएगी 😥🤗🤗 😭😭😭 i miss u😍😍 love u di