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ये जीवन एक ऐसा चक्रव्यूह है। जिसमे हम उलझ

ये जीवन एक ऐसा चक्रव्यूह है।
         जिसमे हम उलझते ही चले जाते हैं
जैसे ही सुबह होती है
                    इन्सान अपनी जिम्मेदारियों का 
                    बोझ लेकर सुबह से शाम तक
                          भगता रहता है ,भगता रहता है।
             यहां तक कि रात में  भी 
         जब तक नींद नहीं आती 
  योजनायें बनाता रहता है
      कल मुझे ये करना है वो करना 
     यहां जाना है वहा जाना है ।
      इन सब में पिसते पिसते 
        वो अपने मन का सुकून
                   अपनी रियल ज़िन्दगी तो जी 
ही नहीं पाता 
               खुद को समय ही नही दे पाता।
              और एक दिन ऐसे ही भागते भागते वो 
दुनियाॉं  को अल्विदा कह जाता है।

क्या इसी को जीवन कहते हैं??

©Nirzara Prem Prakash
  कुछ सवाल जिंदगी से

कुछ सवाल जिंदगी से #Poetry

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