यूँ इतरा के एक दिन स्याही, कोरे काग़ज़ से है पूछती..... बोलो..! लफ्ज़ बन कर किस रंग मे उतरूँ आज? मुस्कुराता काग़ज़ बोला ..... तुम मेरी शोभा, मेरी पहचान, मेरा गुरूर हो हर रंग में, हर दिन मुझे मंजूर हो...।। मैं नही कहता..... है इतिहास गवाह, तेरे- मेरे साथ का। रिश्ता हमारा मोहताज़ नहीं .... किसी रंग, रूप और आकार का.....।। -@maira syahi aur kagaz #PenPaper