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कुछ बिखरा बिखरा फिरता हूँ सूनी सूनी इन गलियों में

कुछ बिखरा बिखरा फिरता हूँ सूनी सूनी इन गलियों में
खिल कर वो फूल हुए अब मजा नहीं रहा कलियों में।।

जीवन मे कुछ छूट गए बाकी सब रूठ गए किस्मत का खेल निराला था
सब निकल गया हाथो खाली अब है हाथ मेरे अब कुछ न निकलने वाला था।।

पथों पर निराशा छायी हुई है मंजिल भी अब रास नहीं
तय जिसके लिए करी हदे वो भी तो अब पास नही।।

आँखे खुली याद न अब कुछ आया है जो मिला किस्मत से उसे भी न गले लगाया है।।

झर झर झरने सी बहती है  आँखें कानों में धीरे से कहती है

यादें हैं यादों का क्या वो तो हमेशा रहती हैं।।

यादें छूट रहीं है अब आखों आँखों की नमी अब नमी नहीं

सब पाया मेहनत अब सब साथ है किसी चीज की कमी नहीं।।

गम भी फिर भी रहेगा हो सकते थे तुम पास ये आस हमेशा लगी रही

किस्मत का खेल बड़ा अलबेला था ,था साथ सारा जंहा फिर भी तुम्हारी कमी रही।।

©pratyoosh singh #mashuka
कुछ बिखरा बिखरा फिरता हूँ सूनी सूनी इन गलियों में
खिल कर वो फूल हुए अब मजा नहीं रहा कलियों में।।

जीवन मे कुछ छूट गए बाकी सब रूठ गए किस्मत का खेल निराला था
सब निकल गया हाथो खाली अब है हाथ मेरे अब कुछ न निकलने वाला था।।

पथों पर निराशा छायी हुई है मंजिल भी अब रास नहीं
तय जिसके लिए करी हदे वो भी तो अब पास नही।।

आँखे खुली याद न अब कुछ आया है जो मिला किस्मत से उसे भी न गले लगाया है।।

झर झर झरने सी बहती है  आँखें कानों में धीरे से कहती है

यादें हैं यादों का क्या वो तो हमेशा रहती हैं।।

यादें छूट रहीं है अब आखों आँखों की नमी अब नमी नहीं

सब पाया मेहनत अब सब साथ है किसी चीज की कमी नहीं।।

गम भी फिर भी रहेगा हो सकते थे तुम पास ये आस हमेशा लगी रही

किस्मत का खेल बड़ा अलबेला था ,था साथ सारा जंहा फिर भी तुम्हारी कमी रही।।

©pratyoosh singh #mashuka