जन्मदाता हो तुम बस इसी बात का गुमान हैं, उसके जिस्म पर दिए तुम्हारे अनगिनत घाव हैं, बेटी की इज्ज़त नहीं कर सकते तो सुनो, तुम्हारे पिता होने पर तुम्हें धिक्कार हैं।। बेटे को तुम पैसे कमाने का जरिया मानते हो, लालच में उसपर तुम प्रेम बरसाते हो, वो देगा तुम्हें दो वक़्त की रोटी, इसलिए उसके हर अपराध पर पर्दा डालते हो, तुम्हें बेटों का पिता होने पर अहंकार हैं, तो सुनो, तुम्हारे पिता होने पर तुम्हें धिक्कार हैं।। अपने ही संतान को, दो नज़रों से देखते हो, बेटी के चरित्र पर उंगली उठाते हो, उसके जिस्म और अंतरात्मा को चोट पहुंचाते हो, और खुद को समाज में आदर्श पिता दिखाते हो, तुम नकाब ओढ़ कर चलो, उसी में तुम्हरा उद्धार हैं, लेकिन, तुम्हारे पिता होने पर तुम्हें धिक्कार हैं। कब तक यू असलियत छुपाओगे, एक ना एक दिन सबके सामने आओगे, अपने हर कर्मो का हिसाब चुका कर जाओगे, इंतज़ार रहेगा मुझे, उस दिन का जब तुम अपने किए पर खुद को शर्मिंदा पाओगे, लाख बेटों की चाह रखो तुम, हो सकता हैं, लाखों सुख तुम बेटों से पाओगे, किन्तु एक कटु सत्य हमेशा याद रखना बेटी के हाथों ही मृत्यु उपरांत जल प्रथम पाओगे।।