ना दिखी उसे प्रीत राधा की, ना मीरा की भक्ति जान पाया, अब तू ही बता मेरे कान्हा, वो उसकी प्रीत को तुझ जैसे क्यूँ ना समझ पाया? (कैप्शन में पढ़े) इन सुर्ख़ होंठों की लाली को इंतेज़ार आज भी है उसका, सताता वो अपनी प्रेम दीवानी को आज भी है उतना, गोपियों संग रास रम जाता है वो कई, ना ख़याल आता उसे अपनी राधिका का, जपती रहती वो माला मीरा बन कर, सांझ सवेरे बस एक नाम होता है लब पर