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राहें मिलती गईं, साथ जो था अपनों का, तो रात ढलती ग

राहें मिलती गईं,
साथ जो था अपनों का,
तो रात ढलती गई,
हौंसलों ने भी ना छोड़ा ये दामन,
कि, ऊचाइयाँ बढ़ती गईं और बात बनती गई... किसी शायर ने ख़ूब कहा है। 
मैं अकेला ही चला था जानिबे-मंज़िल मगर 
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया..

मगर ये कारवां उस एक व्यक्ति की बदौलत नहीं बना है, कारवां लोगों की बदौलत है। योरकोट का कारवाँ जो 1 मिलियन को पार कर गया है। ये सब आप के प्रेम, स्नेह व त्याग की बदौलत है। 
आप सब का हृदय से धन्यवाद। 

आइये इस उपलब्धि का जश्न मनाएं। योरकोट से जुड़े अपने अनुभव लिखें।
राहें मिलती गईं,
साथ जो था अपनों का,
तो रात ढलती गई,
हौंसलों ने भी ना छोड़ा ये दामन,
कि, ऊचाइयाँ बढ़ती गईं और बात बनती गई... किसी शायर ने ख़ूब कहा है। 
मैं अकेला ही चला था जानिबे-मंज़िल मगर 
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया..

मगर ये कारवां उस एक व्यक्ति की बदौलत नहीं बना है, कारवां लोगों की बदौलत है। योरकोट का कारवाँ जो 1 मिलियन को पार कर गया है। ये सब आप के प्रेम, स्नेह व त्याग की बदौलत है। 
आप सब का हृदय से धन्यवाद। 

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