।।जिन्दगी।। बहुत थक गए है तेरे इन पल दो पल के एहसानों से कितने सितम सहते सहते पत्थर से बन गए है हम, पल में ख़ुशी, पल में दुःख,न समझ पा रहे हैं, न पढ़ पा रहे हैं तेरे इन पल-पल बदलते चेहरे को, तुम जिन्दगी हो या गिरगिट जो रंग बदले जा रही हो ।। ।।जिन्दगी।। आख़िर कब तक सहते रहेंगे तेरे इन बेकारण मिलते जुर्म को,बता भी दे, क्या कसूर है जो इतनी माकूल सजा दिए जा रही है, वाह! जिंदगी कितने रंग तेरे देखने बाकी है अभी तक...।। #जिन्दगी#विचार#शब्द#लाइफ#शब्द#एहसान#एहसास#लोग#कविता#कहानी