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ज़िस्म की लिप्सा सही, दुर्वासना की गन्ध है । आत्मा

ज़िस्म की लिप्सा सही,
दुर्वासना की गन्ध है ।
आत्मा का प्रेम सच,
माधुर्य कुसुम सुगंध है ।।
मानुष विकल अभिलिप्त है,
जड़ इन्द्रियों के भोग में ।
बसता चिरन्तन सुख अमीरस
आत्मा के योग में ।। "प्रेम और वासना"
इन दो शब्दों में अन्तर करने वाली एक लघु कविता

आज प्रायः सभी लोग इन दो शब्दों को एक ही अर्थ से देखते हैं..
और अलगाव करते भी हैं तो कैसे, मात्र किसी लौकिक तर्क के आधार पर..
भारत का अध्यात्म तो ये नहीं सिखाता..

मैं धीरे धीरे सभी तत्त्वों पर कविताएँ लिखने का प्रयास करूँगा..
ज़िस्म की लिप्सा सही,
दुर्वासना की गन्ध है ।
आत्मा का प्रेम सच,
माधुर्य कुसुम सुगंध है ।।
मानुष विकल अभिलिप्त है,
जड़ इन्द्रियों के भोग में ।
बसता चिरन्तन सुख अमीरस
आत्मा के योग में ।। "प्रेम और वासना"
इन दो शब्दों में अन्तर करने वाली एक लघु कविता

आज प्रायः सभी लोग इन दो शब्दों को एक ही अर्थ से देखते हैं..
और अलगाव करते भी हैं तो कैसे, मात्र किसी लौकिक तर्क के आधार पर..
भारत का अध्यात्म तो ये नहीं सिखाता..

मैं धीरे धीरे सभी तत्त्वों पर कविताएँ लिखने का प्रयास करूँगा..