सर चढ़ कर जो बोल रहा था वो नशा धीरे धीरे उतर रहा था जिस भ्रम मे हम जी रहे थे कुछ धुंधला सा अब वो दिखाई दे रहा था हमारी आंखों मे आंसु देख कर जिसकी आखें भर आती थी आज वहीं चेहरा हमे रूला रहा था धीरे धीरे पर अब वो अपनी हकीकत बता रहा था शायद आज वो भ्रम से पर्दा हटा रहा था ©S P पहला प्यार पहली बार #fourlinepoetry