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White जो कहते हैं ना एक वक्त के बाद घाव भर जाते है

White जो कहते हैं ना एक वक्त के बाद घाव भर जाते हैं 
गलत कहते हैं घाव कभी नहीं भरते
बस हम उनके साथ जीना सीख जाते हैं 
बचपन में इधर पसंदीदा कलरफुल पेन का न मिलना
और उधर आंखों में मोटे मोटे आंसू की तैराकी शुरू
तब कहते थे पेंसिल ले लो 
पता है इसकी तो दूसरी नोंक भी आ जाती है 
पेन तो पन्ने बर्बाद कर देती है 
थोड़े से ओर बड़े हुए तो डॉल के जैसे कपड़ों पर उलझ  गए 
ये तो पूरी जालीदार है ये जल्दी फट जाते है 
और बाद में घर में पहनने के काम भी नहीं आते
थोड़े और बड़े हुए तो पसंदीदा सब्जेक्ट का रोना 
और तर्क ये कि जो कुछ बनने वाले होते हैं ना 
वो आर्ट्स साइड से पढ़कर भी बन जाते हैं 
थोड़े और बड़े हुए तो बाहर न जा पाना 
तर्क घर में भी तो पढ़ाई हो सकती है फॉर्म भर लो पेपर देने चले जाना
 सर्टिफिकेट तो मिलता ही है प्राइवेट कोर्स का भी 
थोड़े और बड़े होने पर  जीवनसाथी को चुनने में रोक 
तर्क ये कि लव मैरिज जो होती है ना टिकती नहीं है 
जितने लोगों ने भी की ना बाद में सबको पछतावा ही होता है 
घाव तो बचपन से ही खोने का ही है कभी पेन का कभी ड्रेस का कभी सब्जेक्ट का कभी कॉलेज का तो
 कभी जीवनसाथी का लेकिन अब आदत हो गई है 
आंसू के साथ मुस्कुराने की मैं बहुत खुश हु ये बात जताने की 
घाव कभी नहीं भरते वक्त के साथ भी नहीं
 बस हम ही उनके साथ जीना सीख लेते हैं 

सुमन kothari

©एहसासों की दुनिया #rajdhani_night
White जो कहते हैं ना एक वक्त के बाद घाव भर जाते हैं 
गलत कहते हैं घाव कभी नहीं भरते
बस हम उनके साथ जीना सीख जाते हैं 
बचपन में इधर पसंदीदा कलरफुल पेन का न मिलना
और उधर आंखों में मोटे मोटे आंसू की तैराकी शुरू
तब कहते थे पेंसिल ले लो 
पता है इसकी तो दूसरी नोंक भी आ जाती है 
पेन तो पन्ने बर्बाद कर देती है 
थोड़े से ओर बड़े हुए तो डॉल के जैसे कपड़ों पर उलझ  गए 
ये तो पूरी जालीदार है ये जल्दी फट जाते है 
और बाद में घर में पहनने के काम भी नहीं आते
थोड़े और बड़े हुए तो पसंदीदा सब्जेक्ट का रोना 
और तर्क ये कि जो कुछ बनने वाले होते हैं ना 
वो आर्ट्स साइड से पढ़कर भी बन जाते हैं 
थोड़े और बड़े हुए तो बाहर न जा पाना 
तर्क घर में भी तो पढ़ाई हो सकती है फॉर्म भर लो पेपर देने चले जाना
 सर्टिफिकेट तो मिलता ही है प्राइवेट कोर्स का भी 
थोड़े और बड़े होने पर  जीवनसाथी को चुनने में रोक 
तर्क ये कि लव मैरिज जो होती है ना टिकती नहीं है 
जितने लोगों ने भी की ना बाद में सबको पछतावा ही होता है 
घाव तो बचपन से ही खोने का ही है कभी पेन का कभी ड्रेस का कभी सब्जेक्ट का कभी कॉलेज का तो
 कभी जीवनसाथी का लेकिन अब आदत हो गई है 
आंसू के साथ मुस्कुराने की मैं बहुत खुश हु ये बात जताने की 
घाव कभी नहीं भरते वक्त के साथ भी नहीं
 बस हम ही उनके साथ जीना सीख लेते हैं 

सुमन kothari

©एहसासों की दुनिया #rajdhani_night