कभी कभी सोचता हूं आंसुओ की कीमत नही। बेकार ही आंसुओ को बहाया जाता है कोई समझता नही। कोई पोछता नही। जानकर वजह भी अनजान बन जाते हैं ये कमबख्त आंसू भी जैसे मौके को तलाश में होते हैं जब कोई याद आता है किसी का ख्याल आ जाता है कोई ऐसी बात कर जाता है बस टपकना शुरू। ना मौका देखते ना जगह देखते। हां कुछ आंसू समझदार होते हैं हमेशा अकेले में निकलते हैं किसी कोने में या तकिए के ऊपर। काश की इन आंसुओ की कीमत होती। एक एक आंसू पोछने वालो का तांता लग जाता। तो शायद फिर आंसुओ के भी नखरे होते। निकलते ही नही। खैर आंसू आंसू ही निकलेगे। मगर ये दुआ इस बार आंसू खुशी के लिए हो #अनुराज ©Anuraag Bhardwaj #lonely