अपना ही था, कोई बेगाना नहीं दोस्त का दोस्त था, पर अंजाना नहीं (poem in caption) अपना ही था, कोई बेगाना नहीं दोस्त का दोस्त था, पर अंजाना नहीं बिन जाने, बिन पहचाने एक डोर सी बंध गई थी उस्से ना जाने क्या नाम देती मैं इस संबंध को ख़्वाइश थी कि मिलते किसी चौराहे पर यूँ ही जान पहचान बढा़ते, एक ही मुलाकात पर