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आसमान में बिखरे पतंगों से, चलो कुछ रंग चुराते हैं,

आसमान में बिखरे पतंगों से,
चलो कुछ रंग चुराते हैं,
उड़ते हैं हवाओं के संग में,
पर पैरों को धरती पे टिकाते है,
बचपने को जिंदा कर के,
फिर से पेंच लड़ाते है,
खरीदने की इच्छा छोड़ के,
चलो पतंगे लूट के लाते हैं,
छोड़ो दुनिया के काम,
चलो आज छतों से,
काई-पो-चे चिल्लाते हैं।

©Anubhav Kumar
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