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धरा-अंबर ने जो कुछ सोचा, वो एक दूसरे को बताना है।

धरा-अंबर ने जो कुछ सोचा, 
वो एक दूसरे को बताना है।
हवाओं ने डाकिया बन कर
ये संदेश दोनों तक पहुंचना है।
एक दूजे को ऐसे निहारते 
जैसे बस नैन से ही छू जाना है।
धरा जो उगाती, अंबर उसे सिंचता 
ये चमन जैसे इनका घराना हैं।
दूरियों का इन्हें अहसास ही नही,
 बिन मिले भी मिलन ये पुराना है।
मंजिलों की चाह किसे अब 
जब सफ़र ही इतना सुहाना है।

©Sunita Saini (Rani)
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