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मृत्यु (कृप्या अनुशीर्षक में पढ़ें) #रूपकीबातें #r

मृत्यु

(कृप्या अनुशीर्षक में पढ़ें)
#रूपकीबातें
#roopanjalisingh मिलन जितना अधिक आनंददायक होता है, उससे कहीं ज़्यादा कष्टकारी होता है 'विरह'।
यह संपूर्ण शब्द जीवन को अपूर्ण कर देता है और कभी-कभी मृत्यु इस विरह का कारण बनती है।
मृत्यु केवल शारीरिक नहीं होती बल्कि मानसिक भी होती है। मुझे लगता है ईश्वर ने मृत्यु से हुई हानि को कभी देखा नहीं है। ईश्वर को नहीं पता काँपते हाथों से अग्नि देना क्या होता। ईश्वर को नहीं पता किसी गर्म हथेली का ठंडा होना क्या होता है। ईश्वर ने कभी बहते आँसुओं से किसी को विदा नहीं किया होगा। ईश्वर ने कभी चीख-चीख कर जाती अर्थी को रोका नहीं होगा।
मुझे विश्वास है ईश्वर ने शारीरिक मृत्यु के उपरांत मानसिक मृत्यु को कभी जिया नहीं है। उसने अधूरी शिकायतों, बातों, ख्वाहिशों, और निस्वार्थ प्रेम को खुद की जीवित देह में दफन नहीं किया।
ईश्वर ने कभी अर्थी को कांधा नहीं दिया अन्यथा भार का आभास रहता.. की अर्थी का भार केवल कुछ क्षण के लिए नहीं बल्कि स्वयं की मृत्यु होने तक काँधे को पीड़ा देता है।
#roopanjalisinghparmar #roop #roopkibaatein #nojoto #रूपकीबातें
मृत्यु

(कृप्या अनुशीर्षक में पढ़ें)
#रूपकीबातें
#roopanjalisingh मिलन जितना अधिक आनंददायक होता है, उससे कहीं ज़्यादा कष्टकारी होता है 'विरह'।
यह संपूर्ण शब्द जीवन को अपूर्ण कर देता है और कभी-कभी मृत्यु इस विरह का कारण बनती है।
मृत्यु केवल शारीरिक नहीं होती बल्कि मानसिक भी होती है। मुझे लगता है ईश्वर ने मृत्यु से हुई हानि को कभी देखा नहीं है। ईश्वर को नहीं पता काँपते हाथों से अग्नि देना क्या होता। ईश्वर को नहीं पता किसी गर्म हथेली का ठंडा होना क्या होता है। ईश्वर ने कभी बहते आँसुओं से किसी को विदा नहीं किया होगा। ईश्वर ने कभी चीख-चीख कर जाती अर्थी को रोका नहीं होगा।
मुझे विश्वास है ईश्वर ने शारीरिक मृत्यु के उपरांत मानसिक मृत्यु को कभी जिया नहीं है। उसने अधूरी शिकायतों, बातों, ख्वाहिशों, और निस्वार्थ प्रेम को खुद की जीवित देह में दफन नहीं किया।
ईश्वर ने कभी अर्थी को कांधा नहीं दिया अन्यथा भार का आभास रहता.. की अर्थी का भार केवल कुछ क्षण के लिए नहीं बल्कि स्वयं की मृत्यु होने तक काँधे को पीड़ा देता है।
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मिलन जितना अधिक आनंददायक होता है, उससे कहीं ज़्यादा कष्टकारी होता है 'विरह'। यह संपूर्ण शब्द जीवन को अपूर्ण कर देता है और कभी-कभी मृत्यु इस विरह का कारण बनती है। मृत्यु केवल शारीरिक नहीं होती बल्कि मानसिक भी होती है। मुझे लगता है ईश्वर ने मृत्यु से हुई हानि को कभी देखा नहीं है। ईश्वर को नहीं पता काँपते हाथों से अग्नि देना क्या होता। ईश्वर को नहीं पता किसी गर्म हथेली का ठंडा होना क्या होता है। ईश्वर ने कभी बहते आँसुओं से किसी को विदा नहीं किया होगा। ईश्वर ने कभी चीख-चीख कर जाती अर्थी को रोका नहीं होगा। मुझे विश्वास है ईश्वर ने शारीरिक मृत्यु के उपरांत मानसिक मृत्यु को कभी जिया नहीं है। उसने अधूरी शिकायतों, बातों, ख्वाहिशों, और निस्वार्थ प्रेम को खुद की जीवित देह में दफन नहीं किया। ईश्वर ने कभी अर्थी को कांधा नहीं दिया अन्यथा भार का आभास रहता.. की अर्थी का भार केवल कुछ क्षण के लिए नहीं बल्कि स्वयं की मृत्यु होने तक काँधे को पीड़ा देता है। #Roopanjalisinghparmar #Roop #roopkibaatein nojoto #रूपकीबातें