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अब जितने काम मुश्क़िल नज़र आते है उतने ही मुश्क़िल से

अब जितने काम मुश्क़िल नज़र आते है
उतने ही मुश्क़िल से वो दोस्त नज़र आते है,

बड़ी मशक्कत से कश्ती किनारे पर आती है,
उतनी मशक्कत से अब दोस्त घर आते है

यह बारिश यह सर्दिया अपने वक्त के हिसाब से हे आते
यह दोस्त ही हे जो बिना काम बिना पैग़ाम के आजाते हे

सभी का मर्तबा हे यू तो बड़ा ही अफ़ज़ल,
पर कम्भख्त वो पुराने दोस्त बहुत याद आते है ।।




-मो.रिज़वान मंसूरी
अब जितने काम मुश्क़िल नज़र आते है
उतने ही मुश्क़िल से वो दोस्त नज़र आते है,

बड़ी मशक्कत से कश्ती किनारे पर आती है,
उतनी मशक्कत से अब दोस्त घर आते है

यह बारिश यह सर्दिया अपने वक्त के हिसाब से हे आते
यह दोस्त ही हे जो बिना काम बिना पैग़ाम के आजाते हे

सभी का मर्तबा हे यू तो बड़ा ही अफ़ज़ल,
पर कम्भख्त वो पुराने दोस्त बहुत याद आते है ।।




-मो.रिज़वान मंसूरी