तक़दीर से हार कर तस्वीर निहारती हैं, छलकती आँखें मन भिगा जाती हैं..! झुलसता है बदन पुरानी यादों के साये में, रिश्ता ख़ुद से ये कैसा निभा जाती हैं..! छप जाती हैं लक़ीरें आंसुओं के धार की, कभी रुलाती हैं बेहिसाब कभी मुस्कुरा जाती हैं..! ख्वाहिशें अधूरी और अधूरी कहानी के, बीच का किस्सा नायाब सुना जाती हैं..! टूटे दिल के टुकड़े हज़ारों और, हर टुकड़े में ख़ुद को तन्हा दिखा जाती हैं..! मैं ही हूँ बदकिस्मती का मारा, जग में जन जन को ये बता जाती हैं..! ©SHIVA KANT #Rose #taqdeerkakhel