ज़िन्दगी में जितना हम यार उठते रहते है। ज़िन्दगी से हर दफ़ा उतना गिरते रहते है।। ये मुहब्बत का असर है सनम जो आजतक। हम बिछड़ के भी यहाँ तुमसे मिलते रहते है।। हुस्न की चाहत किसे अब नहीं होती यहाँ। एक है जो आप बस ओढ़े परदे रहते है।। अब किसी भी राह जो जाए मिलने उन्हें। रुक के भी लगता है पैर चलते रहते है।। है जमाना ये बहुत ही बुरा क्या सोचना। आजकल माँ-बाप बच्चों से कहते रहते हैं।। हमने भी कुछ गलतियां की बताने में उन्हें। बस इसी ही बात से आज डरते रहते है।। फिर तरक्की की वज़ह से टूटा रिश्ता था। लोग क्यों अब ख़ामख़ा यार जलते रहते है।। ये जहां हमको बहुत रास आयी ज़िन्दगी। लोग मरने के लिए तुमसे लड़ते रहते है।। ©Badal Raagg ग़ज़ल बह्र - 2122 212 2122 212 #badal #worldpostday