जरा सोचिएगा हम सब अब कहाँ हैं !! "अब मैं छोटी-सी समस्या को एक डरे हुए नागरिक की तरह देखता हूँ सबको ठीक करना अब मेरा काम नही यह सोंचते हुए हर गलत काम मे में शरीक हो जाता हूँ अपनों से छोटों को देखता हूँ हिक़ारत से ओर खुद को बड़ा महसूस करता हूँ पड़ोसी के दुःख को मानता हूं पड़ोस के दुःख हैं और एक दिन पिता बीमार होते हैं तो सोचता हूँ अब पिता की उमर हो गई है " लिटल कविता