बेबुनियाद आरोप का सिलसिला ये ख़त्म हो जाँच कर तथ्य की,फिर किसी पर बात हो बात में साबित गर हो आरोप जो उसपर लगा आरोप की फिर बात इतनी,की ख़ुद पर उसको शर्म हो बेबुनियाद आरोप से उजड़ी हैं कितनी ज़िंदगी कितने घर उजड़े बसें कितनी मिली तबाही आरोप साबित ना हुआ जो देश के विधान से लौट के फिर आ सकी ना चल बसी जो जिंदगी झूठ के आरोप का व्यापार सारा बन्द हो बदनाम करने का किसी को कोई और तरीक़ा ईज़ाद हो दुश्मनी भी साध कर करना कीसी से इस क़दर मरने पर तेरे बाद में किसी और से ना रन्ज हो ।। बेबुनियाद आरोप