-मैं एक स्त्री हूं। चौखट में बैठी राह निहारती। बंद बक्सों में अपनी पहचान खोजती। घर के हर कोने में अपना वजूद ढूंढती। तलाशती अपनी परछाई गली के हर छोर तक तेरी ओर जाते हर मोड़ तक सैकड़ों सवालों से घिरी ,निर्दोष होकर भी छली। यातनाओं में पली। मैं एक स्त्री हूं बंदिनी नहीं। किरन (के.पी) women,s day special