औरों कि खातिर यूं तन्हां अपनो में, रोता रहा हूँ मैं। औरों को जोड़ते-जोड़ते बस,खुद टूटता गया हूं मैं। चाहे होली हो या दशहरा, या फिर दिवाली हो, तो क्या।