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औरों कि खातिर यूं तन्हां अपनो में, रोता

 औरों कि खातिर यूं 
     तन्हां अपनो में,
     रोता रहा हूँ मैं।
औरों को जोड़ते-जोड़ते
बस,खुद टूटता गया हूं मैं।
चाहे होली हो या दशहरा,
   या फिर दिवाली हो,
       तो क्या।
 औरों कि खातिर यूं 
     तन्हां अपनो में,
     रोता रहा हूँ मैं।
औरों को जोड़ते-जोड़ते
बस,खुद टूटता गया हूं मैं।
चाहे होली हो या दशहरा,
   या फिर दिवाली हो,
       तो क्या।