दिल को जो माहताब लगता है । इश्क़ की इक किताब लगता है ।। तुम्हारे , हुस्न का , ये जादू है । सादा पानी , शराब लगता है ।। जब भी देखूँ , मैं तेरे ,चेहरे को । ताज़ा,ताज़ा, गुलाब लगता है ।। तेरा आशिक़, तिरा दिवाना हूँ । दूर रहना अज़ाब, लगता है ।। तेरी हर एक अदा , क़ातिल है । और क़यामत शबाब,लगता है ।। तेरी ऑखों में वो,कशिश है कि। नक़ाब बे नक़ाब , लगता है ।। ग़म केमौसम का,तसव्वुर"सानी। सबके दिल को,ख़राब लगता है।। (Md Shaukat Ali "saani") चेहरा तेरा महताब लगता है।