Nojoto: Largest Storytelling Platform

पत्र सारे पढ़ लिए संदूक में जो भी रखे थे, पर व


पत्र  सारे  पढ़  लिए संदूक में जो भी रखे थे,
पर विरह के ताप में कोई कमी आई नहीं है।

सूखते इन आँसुओं से आर्द्रता की बात करने,
नेह  नद  को भेजने की है विनय तुमसे हमारी।
हो सके तो भेज देना रात्रि के अंतिम प्रहर तक,
जागते  इन  चक्षुओं को उम्र भर की नींद प्यारी।
हो गया है दीप मद्धिम प्रणय की संवेदना का,
पर  तपित इस देह में कोई नमी आई नहीं है।
पत्र----------------------------------------(१)

धैर्य  रखने  में  बचीं  थीं  अश्रु  की जो शेष बूँदें,
मैं  उन्हें  तेरे  दृगों  को  सौंपकर अब जा रहा हूँ।
स्वर्ण कलशों  में  भरे उस मद्य को दो घूँट पीकर,
शिष्टता  की  देहरी  को लाँघकर अब जा रहा हूँ।
मृत्यु को वरने लगीं इस देह की सब तंत्रिकाएं,
पर प्रबल मन कामना में  संयमी आई नहीं है।
पत्र----------------------------------------(२)

चढ गये  हैं पुष्प अब तो पार्थिव इस सुर्ख तन पर,
बस  तुम्हारे आगमन को  है प्रतीक्षित भीड़ सारी।
कल्पनाओं के भँवर में मिलन की अंतिम घड़ी को,
अग्नि  देकर आचमन को है प्रतीक्षित भीड़ सारी।
प्रज्वलित मेरी चिता पर नम हुए हैं नेत्र सबके,
पर  तुम्हारे  वक्ष  में  कोई  गमी आई  नहीं है।
पत्र------------------------------------------(३)

©करन सिंह परिहार
  #वियोग