अपनी गृहस्थी को कुछ इस तरह बचा लिय करो,,
कभी आँखें दिखा दी कभी सर झुका दिया करो।।
आपसी नाराज़गी को लंबा चलने ही न दिया करो,,
वो न भी हंसे तो तुम मुस्करा दिया करो।।
रुठ कर बैठे रहने से घर भला कहाँ चलते है,,
कभी उन्होंने गुदगुदा दिया कभी तुम मना लिया करो।।