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Dil अपनी गृहस्थी को कुछ इस तरह बचा लिय करो,, कभी

Dil  अपनी गृहस्थी को कुछ इस तरह बचा लिय करो,, 
कभी आँखें दिखा दी कभी सर झुका दिया करो।।

आपसी नाराज़गी को लंबा चलने ही न दिया करो,,
वो न भी हंसे तो तुम मुस्करा दिया करो।।

रुठ कर बैठे रहने से घर भला कहाँ चलते है,, 
कभी उन्होंने गुदगुदा दिया कभी तुम मना लिया करो।।

खाने पीने पर विवाद कभी होने ही न दिया करो,, 
कभी गर्म खा ली कभी बासी से काम चला लिया करो।।

मियां हो या बीवी महत्तव में कोई भी कम नहीं,, 
कभी खुद डॉन बन गए कभी उनको बाॅस बना दिया करो।।

अपनी गृहस्थी को कुछ इस तरह बचा लिया करो,, 
कभी आँखे दिखा दी कभी सर झुका लिया करो।। अपनी गृहस्थी को कुछ इस तरह बचा लिय करो,, 
कभी आँखें दिखा दी कभी सर झुका दिया करो।।

आपसी नाराज़गी को लंबा चलने ही न दिया करो,,
वो न भी हंसे तो तुम मुस्करा दिया करो।।

रुठ कर बैठे रहने से घर भला कहाँ चलते है,, 
कभी उन्होंने गुदगुदा दिया कभी तुम मना लिया करो।।
Dil  अपनी गृहस्थी को कुछ इस तरह बचा लिय करो,, 
कभी आँखें दिखा दी कभी सर झुका दिया करो।।

आपसी नाराज़गी को लंबा चलने ही न दिया करो,,
वो न भी हंसे तो तुम मुस्करा दिया करो।।

रुठ कर बैठे रहने से घर भला कहाँ चलते है,, 
कभी उन्होंने गुदगुदा दिया कभी तुम मना लिया करो।।

खाने पीने पर विवाद कभी होने ही न दिया करो,, 
कभी गर्म खा ली कभी बासी से काम चला लिया करो।।

मियां हो या बीवी महत्तव में कोई भी कम नहीं,, 
कभी खुद डॉन बन गए कभी उनको बाॅस बना दिया करो।।

अपनी गृहस्थी को कुछ इस तरह बचा लिया करो,, 
कभी आँखे दिखा दी कभी सर झुका लिया करो।। अपनी गृहस्थी को कुछ इस तरह बचा लिय करो,, 
कभी आँखें दिखा दी कभी सर झुका दिया करो।।

आपसी नाराज़गी को लंबा चलने ही न दिया करो,,
वो न भी हंसे तो तुम मुस्करा दिया करो।।

रुठ कर बैठे रहने से घर भला कहाँ चलते है,, 
कभी उन्होंने गुदगुदा दिया कभी तुम मना लिया करो।।

अपनी गृहस्थी को कुछ इस तरह बचा लिय करो,, कभी आँखें दिखा दी कभी सर झुका दिया करो।। आपसी नाराज़गी को लंबा चलने ही न दिया करो,, वो न भी हंसे तो तुम मुस्करा दिया करो।। रुठ कर बैठे रहने से घर भला कहाँ चलते है,, कभी उन्होंने गुदगुदा दिया कभी तुम मना लिया करो।।