अर्सों से किए इंतज़ार का खिताब तो दो, ज़ाया किए वक्त का हिसाब तो दो। मेरे हर्फ़ ज़ाया होने से पहले, मेरी सदा-ए-दिल का जवाब तो दो। मैं कैसे यकीं करु तुम जांनिसार हो मेरे? मेरे हाथों में अपना हाथ और तोहफे में गुलाब तो दो। मुकम्मल कर दो एक मुलाक़ात मेरे हिस्से में भी, खुली जुल्फें कर के आओ और सर पर हिजाब न हो। मुझे जी भर देखने की तलब है नूर को तेरे, तो इस मुलाकात के वक्त पर शर्त ये है कि चेहरे पर नकाब न हो। अर्सों से किए इंतज़ार का खिताब तो दो, ज़ाया किए वक्त का हिसाब तो दो। मेरे हर्फ़ ज़ाया होने से पहले, मेरी सदा-ए-दिल का जवाब तो दो। मैं कैसे यकीं करु तुम जांनिसार हो मेरे? मेरे हाथों में अपना हाथ और तोहफे में गुलाब तो दो। मुकम्मल कर दो एक मुलाक़ात मेरे हिस्से में भी, खुली जुल्फें कर के आओ और सर पर हिजाब न हो।