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पीछे देख कर आखिर मिलेगा क्या।। जो बीत गया वो बापिस

पीछे देख कर आखिर मिलेगा क्या।।
जो बीत गया वो बापिस आएगा क्या।।
नहीं, तो फिर क्यूँ न आगे बढ़ें।।
वक़्त का हाथ थामे और उसके साथ चलें।।
 आपकी पसंद कोई और रहा या रही हो और समय ने परस्थितियों ने उन का साथ नही बख्शा। 
जिंदगी रुकती नहीं किसी के जाने से और दुनियादारी या साथ के लिए आपने साथी चुन तो लिया मगर आप उनमें अपना मन नहीं ढूंढ पाते।उनसे उतना लगाव नहीं महसूस करते।
आपको अपने मनपसंद की याद आती है।

 इस इंतजार में इसी बेखुदी में कहीं आप अपने मौजूदा साथी को पूरी तरह समर्पित नही हो पाते। 
ऐसे में दो बातें जरूरी हो जाती है, एक तो  ये कि अगर आपके मनपसंद साथी को आपकी चाहत इतनी ही थी तो वो साथ ही होते।किन्हीं भी परिस्थितियों में उन्होंने आपके साथ को नकारा है, तो क्या उनके लिए जिसने आपको चुना है उसे दुख देना सही है।

दूसरे अगर कभी आपकी साथी से मुलाकात हुई और उन्होंने आपका बरताव देखा या सुना तो क्या उन्हे ये नही लगेगा कि " अच्छा हुआ, मैं दूर रहा या रही " ।
पीछे देख कर आखिर मिलेगा क्या।।
जो बीत गया वो बापिस आएगा क्या।।
नहीं, तो फिर क्यूँ न आगे बढ़ें।।
वक़्त का हाथ थामे और उसके साथ चलें।।
 आपकी पसंद कोई और रहा या रही हो और समय ने परस्थितियों ने उन का साथ नही बख्शा। 
जिंदगी रुकती नहीं किसी के जाने से और दुनियादारी या साथ के लिए आपने साथी चुन तो लिया मगर आप उनमें अपना मन नहीं ढूंढ पाते।उनसे उतना लगाव नहीं महसूस करते।
आपको अपने मनपसंद की याद आती है।

 इस इंतजार में इसी बेखुदी में कहीं आप अपने मौजूदा साथी को पूरी तरह समर्पित नही हो पाते। 
ऐसे में दो बातें जरूरी हो जाती है, एक तो  ये कि अगर आपके मनपसंद साथी को आपकी चाहत इतनी ही थी तो वो साथ ही होते।किन्हीं भी परिस्थितियों में उन्होंने आपके साथ को नकारा है, तो क्या उनके लिए जिसने आपको चुना है उसे दुख देना सही है।

दूसरे अगर कभी आपकी साथी से मुलाकात हुई और उन्होंने आपका बरताव देखा या सुना तो क्या उन्हे ये नही लगेगा कि " अच्छा हुआ, मैं दूर रहा या रही " ।

आपकी पसंद कोई और रहा या रही हो और समय ने परस्थितियों ने उन का साथ नही बख्शा। जिंदगी रुकती नहीं किसी के जाने से और दुनियादारी या साथ के लिए आपने साथी चुन तो लिया मगर आप उनमें अपना मन नहीं ढूंढ पाते।उनसे उतना लगाव नहीं महसूस करते। आपको अपने मनपसंद की याद आती है। इस इंतजार में इसी बेखुदी में कहीं आप अपने मौजूदा साथी को पूरी तरह समर्पित नही हो पाते। ऐसे में दो बातें जरूरी हो जाती है, एक तो ये कि अगर आपके मनपसंद साथी को आपकी चाहत इतनी ही थी तो वो साथ ही होते।किन्हीं भी परिस्थितियों में उन्होंने आपके साथ को नकारा है, तो क्या उनके लिए जिसने आपको चुना है उसे दुख देना सही है। दूसरे अगर कभी आपकी साथी से मुलाकात हुई और उन्होंने आपका बरताव देखा या सुना तो क्या उन्हे ये नही लगेगा कि " अच्छा हुआ, मैं दूर रहा या रही " । #yqbaba #yqdidi #YourQuoteAndMine #poetrybaaz #aestheticthoughts #restzone #yplm