दुनिया का मेला है प्रश्नों का घेरा! उलझें है सब अपनी ही दुनिया में.. भला कौन पूछता है आजकल कहो, इस भीड़ में है कौन कितना अकेला? हालत किसी की भी है नरम नहीं! टुटा विश्वास,मन से जाता भरम नहीं! शक भरी नजरों से गुजरें है दिन-रात, भरोसे से भरा अब कहां होता सवेरा? काली घटा से कुछ नज़र नहीं आता! कुहासे मन की कहां है अब छटती! इंतजार का लम्हा गुज़ारा नहीं जाता, बस अकेले-अकेले ही सब करते बसेरा! ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1064 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।