तुम्हे आज भी याद हैं हम, ये खूब जानते हैं, भूलने की नाकाम है कोशिश, खूब जानते हैं। ऐ इश्क़ की गलियों से अंजान बने रहने वाले, तेरे दर्द-ए-दिल का सबब भी, खूब जानते हैं। कमाल हैं तेरा यूँ मेरे बगल से गुज़र जाना भी, चुपके से तेरा मुड़ कर देखना, खूब जानते है। तेरा बार-बार यूँ मेरी गली में आ के चले जाना, तेरा मुझे चाह कर भी इन्कार, खूब जानते है। चले भी आओ तुम के इक अरसा गुज़र गया, तेरा फिर से ठगे जाने का डर, खूब जानते है। तुझे इश्क़ में धोखा कभी देगा नहीं 'इकराश़', तुम भी भरोसा करते हो हमपें, खूब जानते है। मेरे दिल के बहुत ही ज्यादा करीब है ये रचना। दिल से ही पढ़ियेगा अगर पढ़ियेगा तो। बहुत अज़ीज़ है ये पंक्तियाँ मेरे लिए। सुविधा के लिये नीचे फिर से लिख दे रहा हूँ। तुम्हे आज भी याद हैं हम, ये खूब जानते हैं,