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कदमों की आहट सुनते ही मैं पीछे मुड़ा, कोई था जो तब

कदमों की आहट सुनते ही मैं पीछे मुड़ा,
कोई था जो तब तक मेरी रूह से जुड़ा।
जकड़न हो चुकी थी मेरी नस नस में तब,
हो चुका था मेरे बदन पर रूहानी कब्ज़ा।
चीख थी निकली की छोड़ दो मेरा शरीर,
पर मजबूर था मैं रात भर रोने को ही।
इस कदर मेरी रूह अपने घर से थी बेघर,
मेरा जीवन बंध चुका था उस जिन्न से ही।

©Shubham36
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shubhamkumarbahe2481

Shubham36

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